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Astrology

कब मनाई जाएगी देवी-देवताओं की होली, जाने शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्व

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Mar 9 2023 4:35PM | Updated Date: Mar 9 2023 4:35PM
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सनातन परंपरा में फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर मनाई जाने वाली होली के बाद चैत्र मास में पड़ने वाली रंग पंचमी का बहुत ज्यादा महत्व है, क्योंकि हिंदू मान्यता के अनुसार आम आदमी के बाद इस दिन देवी-देवता होली खेलते हैं।  रंग, उमंग और आस्था से जुड़ा रंग पंचमी का यह पावन पर्व इस साल 12 मार्च 2023 को मनाया जाएगा।  देवी-देवताओं को समर्पित रंग पंचमी का त्योहार मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजास्थान के कुछ हिस्सों में मनाई जाती है।  आइए रंग पंचमी का शुभ मुहूर्त, धार्मिक महत्व और पूजा विधि के बारे में विस्तार से जानते हैं। रंग पंचमी का पावन पर्व इस साल 12 मार्च 2023, रविवार को मनाया जाएगा।  पंचांग के अनुसार चैत्र मास की पंचमी इस साल 11 मार्च 2023 को रात्रि 10:05 बजे से प्रारंभ होकर 12 मार्च 2023 को रात्रि 10:01 बजे समाप्त होगी।  इस दिन अभिजित दोपहर 12:07 से लेकर 12:55 बजे तक और विजय मुहूर्त दोपहर 02:30 से लेकर 03:17 बजे तक रहेगा। 

रंग पंचमी का दिन देवी-देवताओं की रंगों के माध्यम से पूजा-आराधना के लिए जाना जाता है।  इस दिन लोग अपने आराध्य का ध्यान करते हुए विशेष रूप से आसमान की ओर अबीर और गुलाल फेंकते हैं।  लोगों को मान्यता है कि ऐसा करने से उनके आराध्य देवी-देवता प्रसन्न होकर उनका जीवन खुशियों से भर देते हैं।  मान्यता है कि आकाश में उछाला गया अबीर और गुलाल जब वापस नीचे आकर उन पर गिरता है तो वह ईश्वर का प्रसाद होता है, जो उन्हें पूरे साल सुख-समृद्ध बनाए रखता है। देवी-देवताओं की कृपा बरसाने वाली रंग पंचमी के दिन अपने आराध्य के साथ भगवान श्री विष्णु और धन की देवी माता लक्ष्मी या फिर राधा-कृष्ण की विशेष रूप से पूजा की जाती है।  ऐसे में इस दिन प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठें और स्नान-ध्यान करने के बाद सबसे पहले सूर्य नारायण को जल चढ़ाएं और उसके बाद अपने आराध्य की प्रतिमा या फोटो को किसी चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर ईशान कोण या फिर उत्तर दिशा में रखें। इसके बाद उसे गंगा जल से स्नान कराएं और उकसे बगल में कलश और उसमें आम्र पल्लव और नारियल रखें।  इसके बाद रोली, चंदन, अक्षत, पुष्प, अबीर, गुलाल, फल, धूप, दीप आदि से पूजन करें।  इसके बाद भोग में विशेष रूप से खीर और पंचामृत चढ़ाएं।  इसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और ‘ॐ श्रीं श्रीये नमः’ मंत्र का जाप स्फटिक या कमलगट्टे की माला से करें।  इसके बाद भगवान श्री लक्ष्मीनारायण की आरती करें और अधिक से अधिक लोगों को प्रसाद बांटें। 

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