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तुर्किये के राष्ट्रपति एर्दोआन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में उठाया कश्मीर मुद्दा

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Sep 20 2023 3:25PM | Updated Date: Sep 20 2023 3:25PM
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तुर्किये के नेता ने हाल के वर्षों में संयुक्त राष्ट्र महासभा के उच्च स्तरीय सत्र में विश्व नेताओं को दिए अपने संबोधन में कई बार कश्मीर का मुद्दा उठाया है। उन्होंने मंगलवार को यूएनजीए सत्र में कहा, 'भारत और पाकिस्तान ने 75 साल पहले संप्रभुता और स्वतंत्रता हासिल करने के बाद भी आपस में शांति एवं सद्भाव कायम नहीं किया है।

संयुक्त राष्ट्र: तुर्किये के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन ने यहां संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के उच्च स्तरीय 78वें सत्र में कश्मीर का मुद्दा उठाया। एर्दोआन ने मंगलवार को महासभा की आम बहस में विश्व नेताओं को दिए संबोधन में कहा, 'भारत और पाकिस्तान के बीच संवाद तथा सहयोग के जरिये कश्मीर में न्यायपूर्ण एवं स्थायी शांति की स्थापना कर दक्षिण एशिया में शांति, स्थिरता तथा समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है।' उन्होंने कहा,'तुर्किये इस दिशा में उठाए गए कदमों का समर्थन करना जारी रखेगा।'

एर्दोआन की यह टिप्पणी तब आई है, जब कुछ सप्ताह पहले उन्होंने नयी दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन के इतर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी। इस दौरान दोनों नेताओं ने व्यापार और बुनियादी ढांचा के क्षेत्र में द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर चर्चा की थी। एर्दोआन ने कहा कि यह गर्व की बात है कि भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक अहम भूमिका निभा रहा है। उन्होंने बताया कि वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी और 15 ''अस्थायी'' सदस्य‍ों को स्थायी सदस्य बनाने के पक्षधर हैं।

तुर्किये के नेता ने हाल के वर्षों में संयुक्त राष्ट्र महासभा के उच्च स्तरीय सत्र में विश्व नेताओं को दिए अपने संबोधन में कई बार कश्मीर का मुद्दा उठाया है। उन्होंने मंगलवार को यूएनजीए सत्र में कहा, 'भारत और पाकिस्तान ने 75 साल पहले संप्रभुता और स्वतंत्रता हासिल करने के बाद भी आपस में शांति एवं सद्भाव कायम नहीं किया है। यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है। हम उम्मीद और प्रार्थना करते हैं कि कश्मीर में उचित और स्थायी शांति एवं समृद्धि स्थापित हो।'

एर्दोआन ने 2020 में भी आम बहस में पहले से रिकॉर्ड किए गए वीडियो बयान में जम्मू-कश्मीर का उल्लेख किया था। उस समय भारत ने इसे 'पूरी तरह से अस्वीकार्य' बताते हुए कहा था कि तुर्किये को दूसरे देशों की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए और अपनी नीतियों पर अधिक गहरायी से विचार करना चाहिए।

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